कभी तो देखा होता
मेरी इन आँखों में ,
कि कितना प्यार है
मेरी इन आँखों में ,
कि कितना प्यार है
इनमें तुम्हारे लिए।
कभी तो झाँका होता
मेरे दिल में ,
मेरे दिल में ,
तब तुम समझते कि
ये धड़कने तुम्हारा ही नाम लेती हैं।
चढ़ती सांसों पर तुम्हारा नाम लिखा है ,
ढलतीं सांसें तुम्हे याद करती हैं।
ये झुकती पलकें
तुम्हें आँखों में बसाकर रखती हैं ,
ये पलकें जब भी उठती हैं,
तुम्हें ही ढूंढती है।
भीड़ में भी तुम हो,
और तुम्ही हो मेरी तन्हाई में।
तुम मेरी ग़ज़ल में हो,
और तुम्ही मेरी रुबाई में।
लेकिन तुमको कहाँ खबर मेरी ?
कितना बेचैन रहता हूँ
मैं तुम्हारे लिए,
कितनी तड़प होती है
मेरे दिल में तुम्हारे लिए।
कभी तो समझा होता
मेरी मुस्कान के पीछे छिपे दर्द को।
मगर, अफ़सोस तुम भी
दूसरों की तरह निकले।
मुझे आज भी याद है
तुम्हारा मासूम सा
मुस्कुराता चेहरा,
वो नीली आँखें
और उन आँखों में बसे
अनगिनत ख्वाब
याद है तुम्हारी वो
खिलखिलाती हँसी ,
और मोतियों जैसे दांत भी,
गाल पे पड़ने वाले
डिम्पल भी याद है
जो तुम्हारी खूबसूरती में
आठ चाँद लगा देता था।
लेकिन अब तो सिर्फ
तुम्हारी बातें ही हैं ,
तुम्हारी यादें ही हैं ,
तुम तो हो,
तुम मेरे नहीं हो।
बहुत खूब ...
ReplyDeleteएक नई दिशा !
आपका बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि जी।
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