जब वो चले तो अदाओं में बहार लेके चलते हैं
कभी गुलमोहर तो कभी गुलनार लेके चलते हैं।
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जिधर देखें उधर वो ही नज़र आए हैं दफ़अतन
वो अपने जिस्म में क्या खुमार लेके चलते हैं।
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होंठों पर लाली, आँखों में काजल, चेहरे पर हया
वो अपनी तासीर में कितने अंगार लेके चलते हैं।
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उसे देख लें जी भर के तो भूख लगे, ना ही प्यास
वो साथ-साथ अपने शायद घर-बार लेके चलते हैं।
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जो शख़्श मिला शहर में,उसका दीवाना निकला
वो मदभरी निगाहों में पूरा संसार लेके चलते हैं।
सलिल सरोज