हर चीज़ दिख रही है बीमार शहर में
अब आदमी है कितना लाचार शहर में
सड़को पे गिरे ख़ूं के क़तरे भी पू
ये कौन सा नया था त्यौहार शहर में
किसको है फिकऱ साफ मेरा घर रहा करे
चारों तरफ है कूड़े का अम्बार शहर में
दरवाज़े खिड़कियां घरों की अब भी बंद है
दीखता नहीं अमन का आसार शहर में
औंधे पड़े दरख़्त, गिरे साबुत बहुत मकां
आया फिर तूफ़ां, कोई जोरदार शहर में
इंतज़ामात का भी टोटा दीखता है हर जगह
लगती है कितनी बेबस सरकार शहर में
उमड़ा हुआ हुजूम लोगों का तो देखो
ख़ैरात बंटने वाला है भी इस बार शहर में
सज़ा लो दुकान अपनी, चुनाव आ गया
अब से लगे है चीखने अख़बार शहर में
वो लड़की चीख चीख कर सबको बता रही
अस्मत हुई है फिर से, तार - तार शहर में
क्यूँ बोलते हो झूठ #पवन सब शरीफ हैं
अब भी बहुत क़ातिल बेशुमार शहर में
----- श्री अनिल कुमार पांडेय
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