साहब घावों पर मेरे, करते रहे प्रयोग।
वह तो डॉक्टर बन गये, मेरा बढ़ गया रोग।।
घर, खेती, पोखर, पशु, जब हो गए निल्लाम।
तब किसान बीमा लिए, मांगे किश्त प्रधान।।
गोबर, मूत किसान का, दूध दुहे सरकार।
पशुपालन ऋण तेग पर, धरै मैनेजर धार।।
कर्ज, ब्याज और किश्त में, सूली चढ़ा किसान।
तेरहीं की पूड़ी चखै, ले ले स्वाद प्रधान।।
आंगन बाड़ी की लगी, गांव गांव दूकान।
मैडम दलिया बेंचती, दुधमुंहवे हलकान।।
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